Japan vs China: The Renewable Energy Race with Revolutionary Perovskite Solar Panels
दो तकनीकी महाशक्तियां जो लगातार दुनिया में अपनी श्रेष्ठता साबित कर रही हैं। एक तरफ चीन जिसकी तेज रफ्तार विकास और विशालकाय प्रोजेक्ट्स ने दुनिया को चौंका दिया है। दूसरी तरफ जापान जो अपनी सूक्ष्म इंजीनियरिंग और अभूतपूर्व इनोवेशन के लिए जाना जाता है। यह दोनों देश आज एक ऐसे युद्ध के मैदान में आमने-सामने खड़े हैं। जहां युद्ध मिसाइलों से नहीं बल्कि असंभव लगने वाली तकनीक से लड़ा जा रहा है। कैसे जापान ने इंटरनेट स्पीड में 1.02 पेटाबिट्स प्रति सेकंड का रिकॉर्ड तोड़ दिया जो मौजूदा इंटरनेट स्पीड को दसियों लाख गुना पीछे छोड़ता है। लेकिन अब जापान एक ऐसे क्षेत्र में चीन को अंतिम झटका देने की तैयारी कर रहा है जहां चीन को अजय माना जाता है। वह क्षेत्र है सौर ऊर्जा। क्या जापान सचमुच चीन के सौर पैनल साम्राज्य को चुनौती दे सकता है? क्या वह कुछ ऐसा बना रहा है जो आज तक असंभव लगता था? आज हम पर्दा उठाएंगे इस चौंकाने वाले प्लान से। देखिए बात सीधी है। आज अगर कोई देश सौर ऊर्जा का राजा है तो वह है चीन। पिछले दो दशकों से चीन ने सौर पैनल उत्पादन और इंस्टॉलेशन क्षमता में ऐसी बादशाहत हासिल की है कि दुनिया का कोई भी देश उसके आसपास भी नहीं भटकता। आज दुनिया के 80% से ज्यादा सौर पैनल चीन में बनते हैं। उन्होंने अपनी सीमाओं को सौर पैनलों से ढक दिया है और दुनिया के बाजारों पर उनका पूरा दबदबा है। पारंपरिक सिलिकॉन सौर पैनलों के उत्पादन में चीन की दक्षता और लागत प्रभावशीलता बेजोड़ है। यह पैनल सिलिकॉन वेफर्स से बनते हैं। जिन्हें बिजली पैदा करने वाली कोशिकाओं में संसाधित किया जाता है। लेकिन इन पैनलों की अपनी सीमाएं हैं। वे भारी होते हैं, भंगुर होते हैं और उन्हें कठोर कांच की चादरों और धातु के फ्रेम से बचाना पड़ता है जिससे वे भारी और अनाड़ी हो जाते हैं। उन्हें लगाने के लिए सपाट खुली जमीन चाहिए होती है जो हर जगह उपलब्ध नहीं होती। क्या आपको लगता है इस अजय शक्ति को कोई चुनौती दे सकता है? यहीं पर आता है जापान का गुप्त हथियार अल्ट्रा, थिन, लचीले और मोड़ सकने वाले पैरोब्स सौर पैनल। यह कोई सामान्य पैनल नहीं है। यह इतने पतले हैं कि इनकी मोटाई 1 मि.मी. से भी कम है और इनका वजन पारंपरिक सिलिकॉन पैनलों के 10वें हिस्से जितना है। क्या आप जानते हैं यह कैसे बनते हैं? पारंपरिक सिलिकॉन पैनलों की तरह जटिल वेफर प्रोसेसिंग की बजाय पैरोस्काइट सेल को फिल्म या शीट ग्लास जैसी सतहों पर सीधे प्रिंट या पेंट करके बनाया जाता है। यह उन्हें अविश्वसनीय रूप से लचीला और हल्का बनाता है। सोचिए एक ऐसी सौर फिल्म जिसे आप किसी भी सतह पर चिपका सकते हैं। दीवार पर, खिड़की पर यहां तक कि अपनी गाड़ी की छत पर भी। इस तकनीक का विकास नेशनल इंस्टट्यूट ऑफ इंफॉर्मेशन एंड कम्युनिकेशंस टेक्नोलॉजी और अन्य जापानी शोध संस्थानों में दशकों से हो रहा है। उनका लक्ष्य है 2050 तक नेट हीरो उत्सर्जन हासिल करना और चीन की सौर तकनीक पर अपनी निर्भरता कम करना। जापान के अर्थव्यवस्था, व्यापार और उद्योग मंत्रालय ने भी पेरोस्काइट को डीकार्बोनाइजेशन और औद्योगिक प्रतिस्पर्धा दोनों को प्राप्त करने के लिए सबसे अच्छी शर्त बताया है। जापान एक छोटा, सघन आबादी वाला और ज्यादातर पहाड़ी देश है। इसकी लगभग 70% जमीन पहाड़ी है। पारंपरिक सौर पार्कों के लिए सपाट जमीन की कमी हमेशा से एक बड़ी बाधा रही है। लेकिन पैरोस्काइट पैनल अपनी लचीलेपन और हल्के वजन के कारण पहाड़ी इलाकों, घुमावदार छतों और यहां तक कि इमारतों की दीवारों पर भी आसानी से लगाए जा सकते हैं। जहां सिलिकॉन पैनल लगाना असंभव होता। और हां पैरोस्काइट पैनल में आयोडीन एक महत्वपूर्ण घटक है। क्या आप जानते हैं आयोडीन के उत्पादन में जापान दुनिया में दूसरे नंबर पर है चिल्ली के बाद। इसका मतलब है कि जापान के पास इस नई तकनीक के लिए आवश्यक कच्चे माल की घरेलू आपूर्ति है जिससे वे चीन पर निर्भरता कम कर सकते हैं और अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित कर सकते हैं। यह सिर्फ एक तकनीकी प्रगति नहीं बल्कि एक भू राजनीतिक मास्टर स्ट्रोक भी है। जापान सरकार इस तकनीक को बढ़ावा देने के लिए बड़े पैमाने पर प्रोत्साहन दे रही है। उन्होंने प्लास्टिक निर्माता सेसुई केमिकल जैसी कंपनियों को 157 अरब यन लगभग एक अरब डॉलर का अनुदान दिया है। उनका लक्ष्य है कि सेसुई केमिकल 2027 तक 100 मेगावाट बिजली पैदा करने के लिए पर्याप्त पैरोस्काइट सौर पैनल बनाएगी जो 300 घरों को बिजली दे सकती है। लंबी अवधि में जापान का लक्ष्य 2040 तक 20 गीगावाट बिजली पैदा करने के लिए पर्याप्त पैरोस्काइट सेल स्थापित करना है। क्या आपको पता है 20 गीगावाट कितना होता है? यह लगभग 20 परमाणु रिएक्टरों के उत्पादन के बराबर है। इस लक्ष्य के साथ जापान अपनी कुल बिजली जरूरतों का 50% तक रिन्यूएबल एनर्जी से पूरा करने का लक्ष्य बना रहा है। जिसमें सौर ऊर्जा पैरोस्काइट और सिलिकॉन दोनों लगभग 29% हिस्सेदारी होगी जो 2023 के 9.8% से बहुत ज्यादा है। जापान पहले से ही इस तकनीक का उपयोग करके कई अग्रणी परियोजनाओं पर काम कर रहा है। टोक्यो में 46 मंजिला इमारत जो 2028 तक तैयार होगी उसमें पैरोस्काइट सेल्स लगाए जाएंगे। फुकका में एक डोम स्टूडियो में भी पैरोस्काइट पैनल लगाने की योजना है। पैनासोनिक जैसी प्रमुख इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनियां भी खिड़की के शीशों में पैरोस्काइट को इंटीग्रेट करने पर काम कर रही हैं। सोचिए अगर हर इमारत की खिड़की बिजली पैदा करना शुरू कर दे तो क्या होगा? हालांकि उत्साह के बावजूद चुनौतियां अभी भी बाकी हैं। पैरोस्काइट पैनल अभी तक बड़े पैमाने पर उत्पादन के लिए तैयार नहीं है। वे अभी भी सिलिकॉन पैनलों की तुलना में कम कुशल हैं और उनका जीवनकाल भी कम है। लगभग 10 साल जबकि सिलिकॉन का 30 साल। इसके अलावा उनमें जहरीला शीशा होता है जिसके निपटान के लिए सावधानी पूर्वक नियमों की जरूरत होगी। लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि यह तकनीक तेजी से विकसित हो रही है। कुछ प्रोटोटाइप अब लगभग सिलिकॉन पैनलो जितनी शक्तिशाली हैं और उनकी टिकाऊपन भी जल्द ही 20 साल तक पहुंचने की उम्मीद है। यूनिवर्सिटी ऑफ टोक्यो के प्रोफेसर हिरोशी सेगावा जैसे विशेषज्ञ कहते हैं, हमें इसे सिलिकॉन या पैरोस्काइट के रूप में नहीं सोचना चाहिए। हमें यह देखना चाहिए कि हम नवीकरणीय ऊर्जा का अधिकतम उपयोग कैसे कर सकते हैं। सब कुछ इस ओर इशारा कर रहा है कि सौर पैनल उत्पादन में कोई भी देश चीन को हरा नहीं सकता। लेकिन जापान एक अलग ही खेल खेल रहा है। वह मुख्यधारा के उत्पादन में प्रतिस्पर्धा करने की बजाय एडवांस टेक्नोलॉजीस के क्षेत्र में पैर जमाना चाहता है। वो क्वालिटी के साथ लीडिंग इनोवेशन पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। यह सिर्फ चीन को अंतिम झटका देने की बात नहीं है। यह अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने, डीकार्बोनाइजेशन के लक्ष्यों को प्राप्त करने और एक ऐसे भविष्य का निर्माण करने के बारे में है जहां ऊर्जा स्वच्छ, प्रचुर और घरेलू स्तर पर उत्पादित हो। जापान हमें दिखा रहा है कि कभी-कभी सबसे प्रभावी रणनीति सीधे प्रतिद्वंदी से लड़ना नहीं बल्कि एक ऐसा रास्ता बनाना है जिसकी किसी ने कल्पना भी ना की हो। क्या जापान इस असंभव लगने वाली चुनौती में सफल होगा? क्या पैरोस्काइट सौर पैनल सचमुच ऊर्जा के भविष्य को बदल देंगे? इसका जवाब आने वाले दशकों में मिलेगा। लेकिन एक बात तो तय है जापान एक बार फिर दुनिया को सोचने पर मजबूर कर रहा है कि जब बात इनोवेशन की आती है तो असंभव बस एक शब्द है। आपको क्या लगता है? क्या जापान का पैरोस्काइट दाम चीन को चुनौती दे पाएगा? अपनी राय हमें कमेंट सेक्शन में जरूर बताएं। इस वीडियो को लाइक करें, शेयर करें और ऐसे ही और अविश्वसनीय वैज्ञानिक खोजों को जानने के लिए हमारे चैनल को सब्सक्राइब करना ना भूलें।
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Discover how Japan is poised to challenge China’s dominance in renewable energy technology with groundbreaking innovations in perovskite solar panels. Learn about Japan’s ambitious plans to achieve net-zero emissions by 2050 through investment in ultra-thin, flexible solar cells designed for mountainous terrain. This video explores the technological rivalry between two powerhouses, their advancements in clean energy, and what it means for the future of global energy security and decarbonization. Stay tuned for the latest updates on Japan’s government initiatives and pioneering solar projects transforming the energy landscape.
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8 Comments
ਸਾਡਾ ਭਾਰਤ ਜਾਤਾਂ ਪਾਤਾਂ ਪਿਛੇ ਲੜੀ ਜਾਂਦਾ 😮😊
चीन तो सो जाएगा, लेकिन भारत की पिछवा डा फट नहीं जाएगा।😂😂😂😂😂
Life bahut kam hai iski
China has more research man power than Japan. Either china wins or Japan wins but other countries stand far behind.
For a Indian only academic- good for Japan .
❤❤❤❤❤
Abhi tak 4 logone hi comment loyalty aur 6 bata rahy gay time 20.02
Sources???